In a world that often feels divided, we strive to be the glue that binds communities together. Our mission is simple yet profound: create opportunities, support the vulnerable, and make meaningful change accessible to everyone.
थारू, हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र के लोग, दक्षिणी नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हैं। तराई, उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल का क्षेत्र जो हिमालय की निचली श्रेणियों के समानांतर चलता है। यह पूर्व में दलदली भूमि की एक पट्टी है, जो पश्चिम में यमुना नदी से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फेली हुई है। एक समय में अत्यधिक मलेरिया वाले इस क्षेत्र की जल निकासी और खेती ने दलदली भूमि को कम कर दिया है। तराई का पूर्वी भाग पश्चिम बंगाल राज्य और बांग्लादेश में दुआर्स के नाम से जाना जाता है।
यह उत्तराखण्ड में कुमाऊँ हिमालय की प्रमुख जनजाति तथा उत्तराखण्रड राज्य का दूसरा बड़ा जनजातिय समुदाय है। ये जनपद ऊधमसिंहनगर के खटीमा, सितारगंज एवं नानकमत्ता आदि करीब 141 गांव में निवास करते हैं। थारू जनजाति मिश्रित प्रजातीय समूहों का एक समूह है। थारू स्वयं को सिसोदिया वंष यानि महाराणा प्रताप के वंषज मानते हैं। थारू राजपूत उत्पत्ति अधिक प्रमाणित है। थारू लोग प्रतिवर्श महाराणा प्रताप की जयन्ती मनाते हैं। स्त्रियों के बूटेदार लहंगा, ओढ़नी व आभूशण भी राजपूत होने की बात स्वीकारते है।
थारू जनजाति के सम्बन्ध में बहुत से मत प्रचलित हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैः-
नॉर्थ-वेस्टर्न प्रोविन्सेज गजेटियर (1881) में जनजाति के लिए थथराना षब्द का प्रयोग किया गया है। चूँकि राजपूत एवं मुगलों के युद्ध में राजपूतों के निधन के बाद रानियों को बचाकर सुरक्षा कर्मी इस क्षेत्र में भाग आये थे। बाद में रानियों ने सुरक्षाकर्मियों से विवाह सम्बन्ध स्ािापित किया जिनके वंषज थारू राणा कहलाये।
जनगणना प्रतिवेदन (1867) मेें थारू षब्द की उत्पत्ति तरूवा षब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है भीगना जो कि तराई क्षेत्र में अत्यधिक वर्शा के कारण माना जाता है।
नेसफील्ड (1885) ने थारू षब्द की उत्पत्ति थार षब्द मानी है, जो कि जंगलवासी होने का प्रमाण मानते हैं। सीमान्त क्षेत्र में थार षब्द का प्रयोग जंगली भैंसे के लिये किया जाता है।
अवध गजेटियर (1887) में थारू षब्द की उत्पत्ति ताहरे षब्द से मानी गई है। जिसका अर्थ पड़ाव होता है। अतः बाहरी क्षेत्र से आई जातियों के पड़ाव डाले जाने से थारू षब्द को जोड़ा गया है।
Our work spans from grassroots outreach programs to large-scale social initiatives that focus on education, healthcare, livelihood support, and community well-bein
Join us on our journey as we create impactful change, one life at a time. Together, we are Tharuland – dedicated to turning compassion into action and building a world where everyone has the chance to thrive.
थारू, हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र के लोग, दक्षिणी नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हैं। तराई, उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल का क्षेत्र जो हिमालय की निचली श्रेणियों के समानांतर चलता है। यह पूर्व में दलदली भूमि की एक पट्टी है, जो पश्चिम में यमुना नदी से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फेली हुई है। एक समय में अत्यधिक मलेरिया वाले इस क्षेत्र की जल निकासी और खेती ने दलदली भूमि को कम कर दिया है। तराई का पूर्वी भाग पश्चिम बंगाल राज्य और बांग्लादेश में दुआर्स के नाम से जाना जाता है।
यह उत्तराखण्ड में कुमाऊँ हिमालय की प्रमुख जनजाति तथा उत्तराखण्रड राज्य का दूसरा बड़ा जनजातिय समुदाय है। ये जनपद ऊधमसिंहनगर के खटीमा, सितारगंज एवं नानकमत्ता आदि करीब 141 गांव में निवास करते हैं। थारू जनजाति मिश्रित प्रजातीय समूहों का एक समूह है। थारू स्वयं को सिसोदिया वंष यानि महाराणा प्रताप के वंषज मानते हैं। थारू राजपूत उत्पत्ति अधिक प्रमाणित है। थारू लोग प्रतिवर्श महाराणा प्रताप की जयन्ती मनाते हैं। स्त्रियों के बूटेदार लहंगा, ओढ़नी व आभूशण भी राजपूत होने की बात स्वीकारते है।
थारू जनजाति के सम्बन्ध में बहुत से मत प्रचलित हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैः-
नॉर्थ-वेस्टर्न प्रोविन्सेज गजेटियर (1881) में जनजाति के लिए थथराना षब्द का प्रयोग किया गया है। चूँकि राजपूत एवं मुगलों के युद्ध में राजपूतों के निधन के बाद रानियों को बचाकर सुरक्षा कर्मी इस क्षेत्र में भाग आये थे। बाद में रानियों ने सुरक्षाकर्मियों से विवाह सम्बन्ध स्ािापित किया जिनके वंषज थारू राणा कहलाये।
जनगणना प्रतिवेदन (1867) मेें थारू षब्द की उत्पत्ति तरूवा षब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है भीगना जो कि तराई क्षेत्र में अत्यधिक वर्शा के कारण माना जाता है।
नेसफील्ड (1885) ने थारू षब्द की उत्पत्ति थार षब्द मानी है, जो कि जंगलवासी होने का प्रमाण मानते हैं। सीमान्त क्षेत्र में थार षब्द का प्रयोग जंगली भैंसे के लिये किया जाता है।
अवध गजेटियर (1887) में थारू षब्द की उत्पत्ति ताहरे षब्द से मानी गई है। जिसका अर्थ पड़ाव होता है। अतः बाहरी क्षेत्र से आई जातियों के पड़ाव डाले जाने से थारू षब्द को जोड़ा गया है।
जनरल आफ एषियाटिक सोसाइयटी आफ बंगाल (1887) में अथवारू षब्द से थारू को परिभाशित किया गया है। जिसका अर्थ होता है निजी का आठवां दिन यानि ऐसा व्यक्ति जो सप्ताह में एक दिन अपने स्वामी के यहां बेगारी करने को बाध्य था।
क्रुक (1896) ने दारू षब्द का परिवर्तित होकर थारू का प्रचलन माना है। जो इस जनजाति के मदिरा षौक से जोड़ा गया है।
एस0 नॉवेल्स ने गोस्पेल इन गोंडा में थरूवा षब्द को से जोड़ा है। जिसका अर्थ पैदल पथिक बताया गया है।
जनसंख्या- 2011 की जनगणना में थारू जनजाति की कुल जनसंख्या 91342 थी जिनमें 45884 पुरूश तथा 45458 महिलाएं थी। खटीमा में इनकी आबादी 1991 की जनगणना के अनुसार 40645 तथा सितारगंज में 26188 थी। 2011 की जनगणना के में थारूओं की जनसंख्या 91342 हो गयी है। खटीमा एवं सितारगंज दोनों विकास खण्डों में थारूओं के 13368 परिवार निवास करते हैं।
थारूओं की विभिन्न बोलियाँ हैं, जो इंडो-यूरोपीय परिवार के इंडो-ईरानी समूह के इंडो-आर्यन उपसमूह की एक भाषा है, और वे संस्कृति में काफी हद तक भारतीय हैं। अधिकांश थारू कृषि करते हैं, मवेशी पालते हैं, शिकार करते हैं, मछली पकड़ते हैं और वन उत्पाद एकत्र करते थारू जनजाति राणा, जुगिया, डंगौरा, धगरा आदि उपजातियों में विभाजित है। थारू समाज मातृसत्तात्मक होता है। विवाह के मध्यस्थ करने वाले को मजपतिया कहा जाता है। विवाह में चूला बैठाण, भूईयां भूजन, भौरी, कन्यादान आदि प्रचलित रस्में हैं। विवाह से पूर्व दिखनौरी जैसी रस्में भी प्रचलित है। विवाह के पष्चात अन्य समाज में प्रचलित गौना की भांति थारू समाज में चाला जैसी रस्में देखने को मिलती है। थारूओं में मुख्य आजीविका खेती है। थारू महिलाएं टोकरी, चटाई, दरी तथा हाथ के पंखें बनाने में सिद्धहस्त होती हैं।
मुख्य त्योहारः-
होलीः- थारूओं में होली एक सांस्कृतिक महोत्सव है, जिसे वे पूरे एक माह आठ दिन तक मनाते हैं। राणा थारूओं में होलिका के दहन के बाद मुर्दा होली खेली जाती है।
दीपावलीः- दीपावली का त्योहार थारू समाज में हिन्दूओं की तरह बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। दीपावली के त्योहार तक थारू लोगा अपने धान की फसल काटने के बाद लगभग समेट चुके होते है। उत्तराखण्ड राज्य में लोगों के बीच यह भ्रम फैला हुआ है कि थारू समाज में दीपावली षौक के रूप में मनाया जाता है और यह प्रष्न उत्तराखण्ड की कई परीक्षाओं में पूछा जा चुका है। दीपावली थारूओं उस घर में मृतक की बरसी के रूप में आयोजित किया जाता है जहां किसी के घर या परिवार में किसी व्यक्ति के मृत्यु हो चुकी हो। अन्य थारू के घरों में यह त्योहार सामान्य की तरह मनाया जाता है।
चराई महोत्सवः- यह महोत्सव बड़ी तथा छोटी चराई दो रूपों में आयोजित की जाती है। यह त्योहार दीपावली के बाद आयोजित किया जाता है।
औथ पर्वः- नई फसल के स्वागत में की जाने वाली पूजा है।यह धान की कटाई के साथ षुरू की जाती है।
षिव तेरसः- षिवरात्रि के समय इसका आयोजन किया जाता है।
बजहरः- बैषाखी का त्योहार थारू लोगों में बजहर नाम से आयोजित की जाती है।
Here’s a list of impactful social activities that many NGOs, including Tharuland, could engage in to support communities and foster meaningful change
Establish learning centers, computer literacy programs, and vocational training courses.
Organize free medical check-up camps, eye camps, and dental health drives in remote areas.
Support women’s empowerment initiatives through microfinance and small business training.
Supply food, water, and medical aid to communities affected by natural disasters.
Educate communities on waste management, recycling, and sustainable agricultural practices.
Set up sports and cultural activities to keep youth engaged and foster talent.
Educate communities on disease prevention, sanitation, and personal hygiene through workshops.
Set up nutrition programs for undernourished children and provide growth monitoring services.
At Tharuland, our mission is to create a world where every individual, regardless of background, has access to the resources, opportunities, and support needed to thrive. We are dedicated to empowering underprivileged communities through holistic programs in education, healthcare, sustainable livelihoods, and social welfare. Guided by compassion and a commitment to equity, we strive to break the cycles of poverty and exclusion, uplift vulnerable populations, and foster resilience and hope. Our purpose is simple: to inspire meaningful change, one life and one community at a time.
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